अपने दोस्तों के साथ आया मैं फिलहाल पड़ा हूं इको पार्क के हरे-हरे घांसों पर, और इसका कारण कुछ ऐसा है कि मेरे साथ आए सारे दोस्तो की बंदियां आ गई और हर बार की तरह वे लोग झाड़ियो मे चले गए और मैं बिखर गया इन हरी-भरी घांसों पर।
मैं हल्की धुप के कारण अपनी आँखे बंद किए अभी खुद को सिंगल होने पर कोस हीं रहा था कि तभी मेरे कानो मे एक प्यारी सी आवाज़ आई, "ऐक्सक्यूजमी!" इस से पहले कि मै इसे भ्रम मानता मेरे कानों ने वहीं प्यारी आवाज़ को दुबारा सुना।
बिलकुल साधारण सी, ट्रेडिसनल कपड़ो मे, हल्की सी मेकअप के साथ वो रेड कलर की लिपस्टिक मे ऐसी लग रही थी मानो स्वर्गलोक की कोई अप्सरा सीधा मुझसे मिलने आई हो। मैं बिना किसी देर के फट से खड़ा हो गया, और जितना प्यारा बन सकता था बनकर जवाबिया लहज़े मे एक ही शब्द बोल पाया “हांजी!”
वो अपने लड़खड़ाते हूए शब्दो के साथ बड़े हीं प्यार से बोली, ‘वो एक्चुअली, मैं वहां बैठकर पढ़ रही थी, पर वहां कुछ कपल्स आकर बैठ गए, और वहां के बाद धुप सिर्फ यहीं आ रही है, तो क्या मैं यहां बैठ जाऊं?’
क्या जो कुछ भी मैने अभी सुना वो सही था? मुझे खुद मेरे कानों पर यकीन नहीं हुआ, फिर भी मैं इस सुनहरे पल को गंवाना नही चाहता था। इसीलिए मैंने उसे बैठ जाने का इशारा किया। सबसे पहले तो मैंने भगवान का शुक्रिया अदा किया, उसके बाद उन कपल्स का, जिसके वजह से आज़ मै एक खुबसुरत अप्सरा के साथ था।
अब इसके बाद मै सोच हीं रहा था, कि बात कैसे शुरु करूं कि तभी वो आगे से बोली,
आप यहां हर रोज़ आते हो…?
कऽऽ...क्या? नऽऽ..... नहीं, बस अपने दोस्तो के साथ चला आता हूं, जब भी वो कहते हैं। और आप..? (एक ही सांस मे मैने अपना जवाब और सवाल दोनों कह डालें)
ओह.... (उसने कहा और अपने किताबो की ओर देखने लगी)
तुमने जवाब नही दिया.. (मैने अपना प्रश्न याद दिलाते हुए कहा)
अऽऽ... हर रोज़ तो नहीं, पर जब भी मुझे किसी टॉपिक मे प्रौब्लम होती है, मैं यहीं आ जाती हूं। यहां कोइ डिस्टर्ब नही करता न..... (उसने बड़ी प्यारी स्माइल के साथ जवाब दिया)
आप तो दोस्तों के साथ हो नां.... फिर आपके दोस्त लोग कहां हैं...? (उसने पुछा)
दरअसल उनसभी की गर्लफ्रेंड है, तो होंगे कही किसी झाड़ी के पिछे सभी....(मैने बड़े ही बेसर्मी से कहां)
वो अचानक से मेरी तरफ देखने लगी। उसके चेहरे के भाव से मुझे प्रतीत हुआ कि मैने शायद कुछ ज्यादा ही बुरे शब्दो का इस्तेमाल कर लिया है।
सऽ..... सऽ....... सॉरी..,, मेरा मतलब वो नहीं था... (मैनें क्षमा वाले शब्दों में अपनी गलती सुधारते हुए बोला)
हऽ.....! ही...ही... ही... हम्म.. (वो अपने हाथों से मुंह को ढकते हुए हसने लगी)
ओके.. बाय.. 3 बज गए और अब मै चली.. (उसने कहा और उठ गई)
हां.. ठीक है पर नाम तो बता दो..... क्या पता फिर से मिलना हो जाए... (मैने हड़बराते हुए, उत्साहित मन से पूछा)
तुम मुझे जानते हो... परिपूर्ण.! (उसने कहा और चली गई।)
कौन थी ये लड़की..? ये मेरा नाम कैसे जानती है...? और इसने ऐसा क्यों कहा कि मै भी इसे जानता हूं..? सब जानेंगे अगले पार्ट मे.......
Writter- ParipurN ChandrA SharmA
Next Part of This Story is Coming Soon....
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