Taj Mahal: आए दिनों ताज महल पर विवाद होते रहते है। कुछ हिन्दू का कहना है कि ये ताज महल की असली इतिहास इसकी मंदिर होने की है, तो वही इतिहास इसे मुमताज महल के नाम से जानती है। आइए पढ़ते है और समझते है इसके पीछे की असली कहानी।
आगरा: प्रेम का प्रतीक, मुगल वास्तुकला का अद्भुत नमूना और विश्व के सात अजूबों में से एक ताजमहल, सदियों से भारत की शान रहा है। हर साल लाखों पर्यटक इसकी भव्यता को देखने आते हैं, लेकिन क्या आप इस शानदार इमारत के हर पहलू से वाकिफ हैं? इस लेख में हम ताजमहल के गहन इतिहास में उतरेंगे, उपलब्ध सबूतों और अभिलेखों के आधार पर इसकी कहानी को समझने की कोशिश करेंगे।
मुगल बादशाह शाहजहां और मुमताज महल (Mughal Emperor Shah Jahan and Mumtaz Mahal)
ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी प्रिय पत्नी मुमताज महल की याद में करवाया था। मुमताज महल, जिनका असली नाम अर्जुमंद बानो बेगम था, शाहजहां की तीसरी पत्नी थीं और उनसे उन्हें अटूट प्रेम था। 1631 में बुरहानपुर में अपनी चौदहवीं संतान को जन्म देते समय मुमताज महल का निधन हो गया। इस घटना ने शाहजहां को गहरा शोक पहुंचाया और उन्होंने अपनी प्रिय पत्नी की याद को चिरस्थायी बनाने का संकल्प लिया।
निर्माण की शुरुआत और समयरेखा (Commencement and Timeline of Construction)
ऐतिहासिक अभिलेखों और समकालीन लेखों के अनुसार, ताजमहल का निर्माण 1632 ईस्वी में शुरू हुआ था। उस्ताद अहमद लाहौरी को इस शानदार परियोजना का मुख्य वास्तुकार माना जाता है, हालांकि विभिन्न स्रोतों में कई अन्य कुशल कारीगरों और शिल्पकारों का भी उल्लेख मिलता है जिन्होंने इसके निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- मुख्य मकबरा (Main Mausoleum): ताजमहल का केंद्रीय मकबरा लगभग 1643 ईस्वी तक बनकर तैयार हो गया था। यह सफेद संगमरमर से बना है और अपनी जटिल नक्काशी और शानदार गुंबद के लिए प्रसिद्ध है।
- अन्य संरचनाएं (Other Structures): मुख्य मकबरे के चारों ओर कई अन्य इमारतें भी बनाई गईं, जिनमें मस्जिद, मेहमानखाना (Guest House), मुख्य द्वार (Darwaza-i Rauza), और चार बाग (Char Bagh) शामिल हैं। इन सभी संरचनाओं को पूरा होने में लगभग 1649 ईस्वी तक का समय लगा।
- सजावट और अंतिम कार्य (Decoration and Final Touches): ताजमहल की आंतरिक और बाहरी सजावट पर काम 1649 के बाद भी कई वर्षों तक चलता रहा। इसमें कीमती और अर्ध-कीमती पत्थरों की जड़ाई (Pietra Dura), महीन नक्काशी और सुलेख (Calligraphy) शामिल हैं।
निर्माण सामग्री और कारीगर (Construction Materials and Artisans):
ताजमहल के निर्माण में उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग किया गया था। सफेद संगमरमर राजस्थान के मकराना से लाया गया था, जबकि अन्य कीमती पत्थर जैसे जेड, क्रिस्टल, लापीस लाजुली, फिरोजा और कार्नेलियन दूर-दराज के क्षेत्रों से मंगवाए गए थे।
इस भव्य परियोजना को पूरा करने के लिए पूरे भारत और मध्य एशिया से कुशल कारीगरों, पत्थर काटने वालों, इनले कारीगरों, सुलेखकों और गुंबद निर्माताओं को बुलाया गया था। ऐतिहासिक अभिलेखों में इन कारीगरों के नामों का उल्लेख मिलता है, जो इस बात का प्रमाण है कि यह एक विशाल और सहयोगी प्रयास था।
वित्तीय पहलू और अभिलेख (Financial Aspects and Records)
ताजमहल के निर्माण में उस समय भारी लागत आई थी। विभिन्न अनुमानों के अनुसार, इसकी लागत लाखों रुपये थी। हालांकि, सटीक वित्तीय अभिलेखों की कमी के कारण निश्चित आंकड़ा बताना मुश्किल है। फिर भी, समकालीन मुगल दस्तावेजों और यूरोपीय यात्रियों के विवरणों से पता चलता है कि शाहजहां ने इस परियोजना पर उदारतापूर्वक खर्च किया था।
ऐतिहासिक साक्ष्य और अभिलेख (Historical Evidence and Records)
ताजमहल के इतिहास को समझने के लिए कई ऐतिहासिक साक्ष्य और अभिलेख उपलब्ध हैं:
- मुगलकालीन इतिहास ग्रंथ (Mughal Era Chronicles): अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा लिखित ‘पादशाहनामा’ और खफी खान द्वारा लिखित ‘मुंतखब-उल-लुबाब’ जैसे मुगलकालीन इतिहास ग्रंथों में ताजमहल के निर्माण और शाहजहां के शासनकाल का विस्तृत विवरण मिलता है। इनमें ताजमहल के निर्माण की प्रेरणा, समयरेखा और कुछ प्रमुख वास्तुकारों का उल्लेख है।
- यूरोपीय यात्रियों के विवरण (Accounts of European Travelers): कई यूरोपीय यात्रियों जैसे जीन-बैप्टिस्ट टैवर्नियर, फ्रांकोइस बर्नियर और पीटर मुंडी ने 17वीं शताब्दी में भारत का दौरा किया और अपने यात्रा वृत्तांतों में ताजमहल का उल्लेख किया। उनके विवरण ताजमहल की भव्यता और उस समय के सामाजिक-आर्थिक संदर्भ को समझने में मदद करते हैं।
- स्थापत्य शैली और कला (Architectural Style and Art): ताजमहल की वास्तुकला इंडो-इस्लामिक शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें फारसी, इस्लामी और भारतीय वास्तुकला तत्वों का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण देखने को मिलता है। इसकी जटिल नक्काशी, गुंबद, मेहराब और मीनारें मुगल वास्तुकला की उत्कृष्टता को दर्शाती हैं।
- शिलालेख और सुलेख (Inscriptions and Calligraphy): ताजमहल की दीवारों पर कुरान की आयतें और फारसी छंद उकेरे गए हैं। ये शिलालेख न केवल कलात्मक महत्व रखते हैं बल्कि ताजमहल के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व पर भी प्रकाश डालते हैं। इन शिलालेखों के अध्ययन से निर्माण की अवधि और उद्देश्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
- पुरातत्वीय निष्कर्ष (Archaeological Findings): समय-समय पर ताजमहल के आसपास किए गए पुरातात्विक उत्खननों से निर्माण सामग्री, औजारों और अन्य कलाकृतियों के अवशेष मिले हैं, जो इसके निर्माण प्रक्रिया और इतिहास पर प्रकाश डालते हैं।
- विवाद और गलत धारणाएं (Controversies and Misconceptions): ताजमहल के इतिहास को लेकर कुछ विवाद और गलत धारणाएं भी प्रचलित हैं। कुछ इतिहासकारों और कार्यकर्ताओं ने यह दावा किया है कि ताजमहल एक पूर्व-मौजूदा हिंदू मंदिर था जिसे बदलकर मकबरे में तब्दील कर दिया गया। हालांकि, इन दावों का समर्थन करने के लिए कोई ठोस पुरातात्विक या ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। अधिकांश स्थापित इतिहासकार और पुरातात्विक साक्ष्य मुगलकालीन अभिलेखों, यूरोपीय यात्रियों के विवरण और ताजमहल की वास्तुकला शैली को ही इसके निर्माण के प्रमाण के रूप में मानते हैं।
ताजमहल न केवल एक खूबसूरत इमारत है बल्कि मुगलकालीन भारत के इतिहास, कला और प्रेम का एक जीवंत प्रमाण भी है। उपलब्ध ऐतिहासिक अभिलेखों, यूरोपीय यात्रियों के विवरण, स्थापत्य शैली और शिलालेखों से यह स्पष्ट होता है कि इसका निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी प्रिय पत्नी मुमताज महल की याद में करवाया था। हालांकि कुछ विवाद और गलत धारणाएं मौजूद हैं, लेकिन ठोस ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्य इस भव्य स्मारक के मुगल मूल और निर्माण की कहानी का समर्थन करते हैं। ताजमहल आज भी भारत की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और दुनिया भर के लोगों को अपनी सुंदरता और इतिहास से प्रेरित करता है।
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